बहस तो अब शुरू हुई है

जफर की किताब रिलीज के दिन हुई बहस तो चिंगारी मात्र थी। असली बहस तो उसके पढ़ने के बाद शुरू होगी। उनका आखिरी लेख चाहे छापा आखिर में गया है, लेकिन पढ़ने लायक सबसे पहले है। खुद जफर का कहना है कि बाकी लेख पढ़ने से पहले अगर पाठक ‘आपनी पीढ़ी हेठ सोटा फेरीए’ पढ़ लें, तो अन्य लेख पढ़ने के लिए एनर्जी मिल जाएगी। कबीर, बाबा नानक पर लिखे लेख सिख मान्यताओं पर पुर्नविचार करने पर प्ररेति करते हैं, जबकि धरती, पानी और पेङों के महत्व को गुरबाणी के नजरिए से बता कर उन्होंने सभी लोंगों को इनके संरक्षण के लिए प्रेरित किया है। आजादी के बाद देश की तरक्की को लोक बोली में गीतों के जरिए हर कान तक पहुंचाने वाले महान गीतकार नंद लाल नूरपूरी की राजनैतिक जंजाल से उपजी त्रास्द मौत को जफर ने जिस अंदाज में बयान किया है, वो काबिले तारीफ तो है ही उससे मौजूदा दौर के गीतकारों को जो सबक दिया गया है वो काबिले गौर भी है। सबसे चौंकाने वाला लेख ‘दीवाली दा हनेरा पासा’ है, जिसमें जफर ने रिवायत बन चुके गिफ्ट तंत्र पर इस तरह से लिखा है जैसा किसी पंजाबी लेखक आज तक सोचा भी नहीं होगा
कामरेडस जरूर पङें
कामरेडस खास कर पंजाब के जिन्होंने शहीद भगत सिंह को ‘क्रांति का डॉन’ बनाकर रख दिया है, वो जफर का ‘असल भगत सिंह नू तलाशदेंयां’ लेख को जरूर पढ़ें। उन्हें एक नए भगत सिंह के दर्शन होंगे, बशर्ते वह करना चाहें। वैसे इस भगत सिंह को वो भी जानते हैं, लेकिन उसे कैद करके अपने मतलब वाले भगत सिंह को ही सार्वजनिक रखना चाहते हैं। जफर तो इस तलाश में सफल रहें हैं, अब हम सब की तलाश शुरू होती है, जितनी जल्दी हो जाए उतनी जल्दी बेहतर रहेगा।


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