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कविता – मुझे दो आज़ादी !

तुम्हारे गढ़े समाज कीनज़रों में नज़रबंदसवालो की सलाखों मेंकैद मेरी रूह कोदे दो आज़ादी मौत तो मेरे बस में नहींमुझे दे दो जीने की आज़ादी चाहे मुंडन करवा लूंया हो जाउूं जटाधारीदे दो आज़ादीअपना सर बचाने की घुमूं नंग-धड़ंगदिखावे के सजावटी कपड़ों सेकर दो आज़ाद मुझे मर्दऔरत याकुछ और हो जाउूंदे दो आज़ादीलिंग-मुक्त हो जाने …

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अम्मू के नाम ख़त

अम्मू!कभी लगता तुम बहुत बड़ी होमेरी अम्मी होकभी लगताकि तुम नन्हीं सी अम्मू होतुम संग मैं भी हो जाता हूंनन्हा सा बालतुम्हारे मुस्कुराते होठों में से ढूंढता हूंअपनी आंखों की चमकतुम्हें सोच में डूबे देखमेरा दिल भी खाने लगता है गोते चलो अम्मूसोच के सागर से बाहर निकलेंनीले आकाश पर उड़ान भरेंसपनों के बादलों का …

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