अम्मू के नाम ख़त

अम्मू!
कभी लगता तुम बहुत बड़ी हो
मेरी अम्मी हो
कभी लगता
कि तुम नन्हीं सी अम्मू हो
तुम संग मैं भी हो जाता हूं
नन्हा सा बाल
तुम्हारे मुस्कुराते होठों में से ढूंढता हूं
अपनी आंखों की चमक
तुम्हें सोच में डूबे देख
मेरा दिल भी खाने लगता है गोते

चलो अम्मू
सोच के सागर से बाहर निकलें
नीले आकाश पर उड़ान भरें
सपनों के बादलों का पीछा करें
चांद पर अपना घर बनाएं
क्षितिज से
उगता सूर्य देखें
दिन निकलते ही
चांद की तरह
हम भी अदृश्य हो जाएं

जिस्म उतार कर
किरनों की किल्ली पर टांग दें
बादलों से मुट्ठी भर पानी
उधार लें
एक दूसरे पर छिड़कें
गुलाबों की खुशबू
सांसों में भर लें
तितलियों से लेकर रंग
एक दूसरे की आत्मा रंग दें
अदृश्य दुनिया में
आलिंग्न कर लें

शाम ढले
अपना अपना
जिस्म पहनें
चांद जब लौट आए
हर आंख जब सो जाए

चलो वापिस धरती पे चलें
सोते शहर के मध्य
जागते तालाब के किनारे
चांदनी में नहाएं
आओ, समय का चक्र
अपने हाथों से घुमाएं
मोहब्बत का एक नया पल बनाएं..

2
ख़ाब से हकीकत तक
आने के लिए
तुम से तुम तक
पल्कों को चलना होता है
बस एक कदम
कितना आसान है
हर पल तुम संग रहना

3
तुम्हारे बारे में सोचतां हूं
तो सोच कवितामयी होती
तुम्हें देखता हूं
तुम जीती जागती कविता लगती
तुम्हें जीता हूं तो
मैं खुद बन जाता हूं इक गीत
बस इतनी सी है मेरे इश्क की कहानी

-दीप जगदीप सिंह
(अम्मू प्यार से रखा गया, प्रेमिका का नाम है)


Posted

in

by

Tags:

Comments

Leave a Reply