प्रसून जोशी को ‘कैमरा’ कीड़े ने काटा

सबसे पहले तो आपकी याददाशत दरुस्त कर दूं, जी हां ये प्रसून जोशी गेंदा फूल वाले गीतकार ही हैं और सुनिए जनाब ये कीड़ा है ही इतना खतरनाक कि जितना इससे बचो ये उतना ही काट खाने को दौड़ता है, अब आप हस्ती हैं, बॉलीवुड के अरमानों की बस्ती हैं, तो ये कीड़ा आपको भी चट कर जाएगा। पर जनाब यहां तो हालात उससे भी बद्दतर हो चले हैं। अब आप ही बताएं कि गर कीड़ से कटने वाला ख़ुद ही कीड़े को चाटने लगे तो क्या?

जनाब अब पता चला जहरबुझे ‘कैमरा’ कीड़े का नशा इतना ख़तरनाक है कि एक बार चिपक गया तो लत छुटती नहीं। जानता हूं अभी तक बात पहेली ही बनी है, क्षमायाचना के साथ एक बात और कह कर असल मुद्दे पर आता हूं। कुछ दिन पहले मेरे एक क्रांतिकारी मित्र ने ‘गेंदा फूल’ सुनते हुए एक क्रांतिकारी विचार ही दे डाला। क्या प्रसून अगला गुलज़ार बनने जा रहा है। तभी ख़बर छप गई कि गेंदा फूल तो छतीसगढ़ी गाना है जिसे बड़ी सफाई से प्रसून ने अपने नाम गोंद लिया। अभी मैं सोच रहा था कि मुझे प्रसून जोशी से मुलाकात का दिन याद आया, जयपुर का लिट्ररेचर फैस्टिवल था पिछले महीने वहीं पर जनाब विचार चर्चा में क्षेत्रीए भाषाओं के काल का गाल होने पर खूब चिंता जता रहे थे और अपने गीतों में ठेठ शबदों के प्रयोग की भी काफी चर्चा कर रहे थे, सुनने में अच्छा भी लग रहा था। फिर वो मौका आया जब मुझे उनकी बीमारी का पता चला। परिचर्चा के पंडाल से बाहर निकले तो सामने से एक टीवी कैमरे ने घेर लिया, हम भी लपक लिए कि सुनें पर्दे के पीछे गीत रचने वाले प्रसून कैमरे के सामने कैसे बोलते हैं। लो जी सवालों का सिलसिला शुरू हुआ और अपने प्रसून भाई एक्सर्ट अंदाज़ में बाइट देने लगे। पास ही खड़े एक प्रिंट मीडिया के पत्रकार को भी अपने ज्ञान कौशल पर ‘ज्यादा’ ही ‘ओवर कॉन्फिडेंस’ था। अब भई उन्होंने पूछ लिया जनाब साहिर लुधियानवी ने गीतकारों को संगीतकारों से ज्यादा अहृम दर्जा दिलाया, ज्यादा मेहनताना दिलाया। आज वो संगीतकारों/प्रड्यूसरों के दिहाड़ीदार हो गए हैं। पहले गीतकार, गीतकार ही होते थे अब वो पार्ट टाईम हो गए हैं। जवाब था, क्यों कि अब गीतकारी में उतना पैसा नहीं। अगला सवाल था, तो इतना स्तर गिराया किसने की संगीतकार से 1 रुपया ज्यादा लेने के हक रख़ने वाले गीतकारों की कीमत कम हो गई। जवाब था, नए लोग सुधार ला रहे हैं। मैं भी अब काफी हद तक अपनी शर्तों पर काम करता हूं।

तभी बंटाधार हो गया। कैमरे वाले की टेप खत्म हो गई। कॉपी पैन वाले पत्रकार ने अभी अपना अगला सवाल पूछा ही था कि प्रसून साहब ने हाथ खड़े कर दिए। बोले अब काहे का सवाल कैमरा तो बंद हो गया। अरे जनाब सवाल तो सवाल है कैमरे को पूछ के थोड़ी आता है। वो कैमरे वाले की तरफ मुड़े, पूछाः क्या ये आपके साथ नहीं हैं कैमरे वाले ने जनाब दिया जी वो अलग हैं। प्रसून जी इतराए अरे मैं तो इन्हें आपके साथ समझकर जवाब देता रहा। इतना बोलते ही वो ऑटोग्राफ लेने वाली भीड़ के समंदर के साथ आगे बह लिए।

अब समझे जनाब ये ‘कैमरा’ कीड़ा कितना ख़तरनाक है। आप पीछे भागते रहो फोटो खिंचवाने के लिए उनके साथ, कभी नोट तो कभी हथेली पर ऑटोग्राफ लेने के लिए शायद आपके हाथ आ जाएं वो। कैमरे के सामने वो जरुर जुगाली करने रुक जाते हैं।

जानने वाले तो उस प्रिट वाले पत्रकार को भी पहचान गए होंगे। उसी वक्त मुझे जयपुर मेले में ही कही तहलका वाले तरुण तेजपाल की बात याद आ गई। कह रहे थे, मीडिया को बड़े नामों के ग्लैमर से निकलना होगा, उद्यौगपति हों या फिल्मी सितारे, इनके मोह जाल से निकलेंगे तभी सत्यत जैसे घोटाले उजागर होंगे। पत्रकार बंधुओ! सुन रहे हो ना!!!


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