धोनी ले लो, सचिन लेलो, भाजी (भज्जी) ले लो

हर रोज मेरी आंख सुबह एक आवाज से खुलती है, आलू ले लो, गोबी ले लो, बैंगन ले लो ओ ओ ओ। हर रोज इस बात के लिए हम अपनी अम्मा को भला बुरा कहते हैं कि वह गली में सब्जी बेचने आने वाले को घर के सामने बुला लेती हैं और वह अपने मधुर कर्कश कंठ से ये गीत एक ही कंपोजीशन में रोज गाता है। गर हिमेश रेशमिया साहब भी उसे सुन लें तो खुद चक्कर खा जाएं। खैर छोड़िए हम अपनी असली बात पर आते हैं,घटना पिछले वीरवार की है। रोज सुनाई देने वाली आवाज में आज अलग खनक थी, धोनी ले लो, सचिन ले लो, गांगुली ले लो, भज्जी ले लो भाई भाजी ले लो भाई इस आवाज के आदी हो चुके हम को अचानक झटका सा लगा। अपने पयजामे के किनारे हाथ में पकड़े हम धड़ाम से सीढ़ियां उतर कर सीधे घर के दरवाजे पर जा पहुंचे। अभी सब्जी वाले ग्वैये ने अपना मुंह खोला ही था कि हमने अपने हाथ का फाटक लगा कर उसे बंद कर दिया। उसे घूरते हुए पूछा ये क्या चिल्ला रहे हो, धोनी ले लो, सचिन ले लो अरे देश के सम्मानित धुरंधरों को सब्जी की तरह क्यों बेच रहे हो। वो झल्लाया क्या बाबू जी लगता है आप खबरिया चैनल नहीं देखते। पूरी दुनिया ने इन्हें सरेआम बिकते देखा। शाहरुख, प्रिटी सहित शेयर बाजार की तिकड़म से रातों रात अमीर होने वाले साहब को भी शर्म नहीं आई, हम काहे शर्म का घूंघट राग गाते रहें। अपनी कम अकली पर बिना सोचे और जानकारी से अभावग्रस्त दिमाग पर जोर देते हुए हमने कहा कि लेकिन ये आलू प्याज के ठेले पर ये लोग कहां सवार हैं। हाथ में लम्बा सा आलू,जिसके अंडाकार सिरे पर भूरे रंग के बाल से उगे थे को उठाते हुए हमारे थोबड़े पर चिपकी दो जोड़ी आखों के सामने लाते हुए बबुआ बोला,ये देख रहे हैं इसका नाम है धोनी। इस बार कोहरे ने अपनी आलू की फसल बर्बाद कर दी। बीसीसीआई से थोडी सीख ले खास दोस्तों की सिफारिश पर ये बचे खुचे आलुओं में से चुन के 11 लाया हूं। सब का नामकरण करोंड़ों रूपए में बिकने वाले किक्रेट धुरंधरों का रखा है। भई हम तो बर्बाद हो गए। बस एक आस बची है कहीं एक आध धोनी आलू लाख डेढ़ लाख में बिक गया तो वारे न्यारे हो जाएंगे। हम उससे कुछ पूछते उससे पहले ही उसने इस आईडिया का विस्तार बताना शुरू कर दिया, जनाब जब इनके नाम पर चड्डी बनियान, टायर, फिनाइल, चिप्स, छतरी बिक सकते हैं तो क्या आलू नहीं बिकेंगे। हम उसकी अक्ल की मन ही मन दाद देते नहीं थक रहे थे। हम जैसे फटीचरों के मोहल्ले में तुम्हारे ये सेलीब्रेटी आलू खरीदेगा कौन, जाओ शाहरुख, प्रीटी के मुहल्ले में बेचो। वो हमारी अक्ल पर खिसियानी हंसी हंसते हुए चिल्लाया, जनाब ये वो लोग हैं जो उन्हीं पर करोड़ों की बरसात करते हैं, जिनके घर में पहले से गांधी बापू की हरी मोहरों रखने की जगह नहीं होती। उनके नाम के आलू तो आप जैसे फटीचर ही खरीदोगे जो उनके हर लांग शॉट पर हिजड़ों की तरह तालियां पीटते हो, चाहे बाउंडरी पार होने से पहले गेंद आराम से लपक ली जाए। इससे पहले कि हम उसे बताते कि हम तो गरीबी रेखा से भी नीचे वाले फ्टीचर हैं, पिछली गली से आवाज गूंजी, अरे धोनी वाले भाई जल्दी आओ कहां घसियारे से बहस में पड़ हो हम कब से तुम्हारे आलू खरीदने के लिए इंतजार कर रहे हैं। वो ठेले को सरपट दौड़ाता गली मुड़ गया और हम अपना सा मुंह लिए खड़े रह गए।


Posted

in

,

by

Tags:

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *