झाड़ू पोछे से पेरिस तक का सफर:बेबी हालदार


अक्सर हम सब लिक्खड़ सोचते हैं कि हम सब ही सबसे ज्यादा समझदार हैं और साधारण से दिखने वाले लोग गंवार। बेबी हालदार ने सभी कलम के ठेकेदारों की ऐसी सोच के गाल पर वो तमाचा जड़ा है कि हम जमीन पर लौट आएं। मैं अपनी तरफ से उनके बारे में ज्यारा बातें नहीं करना चाहता, क्यों मैं खुद भी बहुत ज्यादा नहीं जानता, लेकिन सबसे चर्चित अमेरीकी वेबसाइट के हिंदी समाचार संस्करण पर प्रकाशित उसके सफर को पढ़ कर मैं ये चिट्ठा लिखने के लिए मजबूर हो गया। पूरी खबर आप के लिए यहां हूबहू दे रहां हूं।


सीमोन द बुआ के देश में बेबी हालदार
पहली बार में यह सुनकर यकीन करना बहुत मुश्किल होता है कि दूसरों को घर में झाड़ू-पोंछा करने वाली लड़की एक लेखिका भी बन सकती है, मगर बेबी हालदार ने इसे हकीकत में बदल दिया. उनकी पहली किताब आलो आंधारि को जबरदस्त सफलता मिली. बीते साल यह किताब हिंदी में प्रकाशित हुई और अब तक उसके दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं. इसका हिन्दी से गहरा रिश्ता है क्योंकि प्रेमचंद के नाती प्रबोध कुमार ने न सिर्फ उन्हें अपने घऱ में रहने की जगह दी बल्कि उन्हें लिखने के लिए प्रेरित किया और उनकी पहली किताब को दुनिया के सामने लाए. उनकी किताब के बांग्ला संस्करण का विमोचन सुपरिचित लेखिका तस्लीमा नसरीन ने किया था. खास बात यह है कि बेबी हालदार ने अपनी दूसरी किताब भी पूरी कर ली है. कवि, पत्रकार और टिप्पणीकार पंकज पाराशर ने पिछले दिनों बेबी हालदार की खोज-खबर ली. प्रस्तुत हैं उनकी टिप्पणियों के कुछ अंश…

फ्लैशबैक
हालदार से मिला. बेबी हालदार पांच-छह साल पहले तक गुमनाम जरूर थी मगर आज वह इतनी चर्चित है कि बर्षों से कलम घिस रहे रचनाकारों तक को उससे रश्क हो सकता है. हालांकि आज भी बेबी का ठिकाना वहीं है, प्रो. प्रबोध कुमार के घर-डी.एल.एफ.सिटी गुड़गांव में. प्यार से जिन्हें वह तातुश कहती है. बेबी साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लेने हांगकांग, पेरिस से होकर आ चुकी है और आज वह देश के भी कई शहरों में वायुयान से आती -जाती हैं, जो उनकी संघर्ष का नतीजा है. न्यूयार्क टाइम्स, बी.बी.सी. , सीएनएन-आइ.बी.एन. आदि पर उनका इंटरव्यू आ चुका है.

लेखिका जैसा दिखना भी जरूरी
बेबी हालदार कुछ महीने पहले पहली बार हांगकांग जा रही थी तो दिल्ली एयरपोर्ट पर उसे रोक दिया गया. अधिकारियों ने कहा कि यह महिला लेखिका कैसे हो सकती है? क्योंकि अधिकारियों की समझ के अनुसार लेखिका होने के साथ-साथ दिखना भी जरूरी है. सो बेबी उनकी नजरों में वैसा दीख नहीं रही थी. द अदर साइड आफ साइलेंस की मशहूर लेखिका उर्वशी बुटालिया भी बेबी के साथ थी. उनके समझाने का भी अधिकारियों पर कोई असर नहीं हुआ. नतीजतन उस दिन बेबी की फ्लाइट मिस हो गई. अगले दिन एक सांस्कृतिक रुप से संपन्न अधिकारी की बदौलत बेबी की रवानगी संभव हो पाई. वहां जाकर दुनिया भर के लेखकों ने बेबी हालदार के संघर्ष से परिचय प्राप्त किया. उसके बाद बेबी पेरिस गईं. वहां तकरीबन एक सप्ताह तक वह रहीं और फ्रेंच भाषी समाज को अपनी प्रतिभा को लोहा मनवाया.

सिमोन के देश में बेबी हालदार
बेबी हालदार जब पेरिस पहुंची तो काफी लोगों को उनसे मिलने की उत्सुकता थी. लोग जानना चाहते थे कि एक कामवाली औरत कैसे आत्महत्या और हत्या से बचे जीवन में इतनी ताकतवर हो सकी? फ्रांस के लोग सांस्कृतिक रुप से कितने संपन्न है इसका अनुमान सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूरोपीय लेखकों के बीच यह धारणा प्रचलित है कि जिसको पेरिस में मान्यता नहीं मिली उसको समझो कहीं मान्यता नहीं मिली. शायद यही कारण है कि रायनेर मारिया रिल्के, स्टीफन ज्विग, सार्त्र, सिमोन सबने पेरिस को अपना ठिकाना बनाया. ऐसे पाठकों के बीच बेबी हालदार एक सप्ताह तक रही। रोज कहीं भाषण देना होता, कहीं पाठकों के सवालों का जवाब देना होता, कहीं आटोग्राफ देना होता और अक्सर फ्रेंच महिलाओं के साथ देर तक बैठकर उनके सवालों का जवाब देना पड़ता. यह सब होता एक दुभाषिया के माध्यम से. वहां के लोग बेबी के सवालों से चमत्कृत होते. हैरत की बात यह है कि फैशन के नये-नये रुप प्रचलित करनेवाले शहर पेरिस की फैशन पत्रिकाओं ने अपने आवरण पर बेबी को छापा, इंटरव्यू लिये.

पंकज पाराशर के ख्बाब का दर से
http://www.aol.in/hindi/art-culture/2008/02/18/writer-baby-haldar.html


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