जी हां वहीं जसवंत सिंह ज़फर जिनकी किताब पर चर्चा के साथ मैंने अपने ब्लॉग का शुभारंभ किया था। बस उस निमंत्रण को पढ़ते ही मेरे लिखने का कीड़ा जाग उठा। दरअसल उन्होंने लुधियाना में अपने चित्रों की प्रदर्शनी इन दिनों लगा रखी है, गांधी जयंती पर उन्होंने इस आयोजन को खास बनाने के लिए शहर के सीनियर सिटीजन होम में रह रहे बुजुर्गों को वहां आमंत्रित किया। यह तो हुआ आमंत्रण, अब जो हुआ वो सुनीए, ज़फर और उनके साथियों का काफिला अपनी अपनी कारों में सुबह 11 बजे सीनियर सिटीजन होम पहुंच गया और सभी को बड़े सम्मान के साथ आर्ट गैलरी तक लाया गया।
हम साथ साथ हैं, ज़फर की अर्धांगिनी बुजुर्गों का हाल चाल जानते हुए, पीछे उनकी बेटी भी नज़र आ रही है
सबसे पहले चाय पानी के साथ ही करीब एक घंटे तक जान पहचान और बातचीत का सिलसिला चला। उसके बाद जसवंत ने सभी को नाश्ते और दोपहर के खाने का मिलन यानि ब्रंच परोसा। फिर बुजुर्गों को अपनी मर्जी मुताबिक कुछ भी कहने या करने के लिए पूरी तरह आज़ादी देदी गई।
फिर क्या था, बापू की शिक्षा पर अमल करते हुए बच्चों का एक ‘तमाचा’ पड़ने पर दूसरा गाल आगे करते ही घर से बाहर किए गए इन बुजुर्गों ने जो अपनी आप बीती सुनाई, उसे सुन कर शायद हरे लाल नोटों पर छपे बापू की फोटो की आंखें भी भर आती।
ये तो शुरूआत भर थी बीते लम्हों को हाशिए पर रख जब उन बुजुर्गों ने चित्रों में छिपे रंगों से अपने अतीत के खुशग्वार रंग तलाशे तो सबके चेहरे पर मुस्कान के फूल खिल गए। फिर हर पल दोस्ती, अपनेपन, खिलखिलाहट और रंगों के नाम गुज़रा। मौके पर मौजूद सभी कलाकार और कलमकार साथियों को इस बात की राहत थी कि उन्होंने बापू गांधी के वचनों को जिन्हे वो अपने रंगों और लफ्जों में के साथ जिंदगी में भी ढालने की हर पल कोशिश करते रहते हैं, पर खरे उतरते हुए उनकी जयंती पर इन महात्माओं के दिल में यह अहसास जगा सके, कि वो आज भी उसी भारत में रहते हैं, जिसे बापू का देश कहा जाता है।
जो पराई पीढ़ा के अहसास को समझने वाले थे। सवाल वही है क्या आपने कभी अपना जन्मदिन या कोई और त्योहार ऐसे मनाने के बारे में कभी सोचा है। ज़रा ग़ौर से सोचिए
ज़फर तुम्हें सलाम!!!
Leave a Reply