जसवत सिहं जफर की ‘सिक्ख सो खोज लहै’ ने छेङी बहस
जसवंत जफर यूं तो पंजाब राज्य बिजली बोर्ड में बतौर इंजीनियर कार्यरत हैं, लेकिन उनके अंदर का कवि अक्सर मचलता रहता है। इसी की वजह से वह अब तक दो काव्य संग्रह पंजाबी साहित्य को दे चुके हैं। दूसरा काव्य संग्रह काफी चर्चित हुआ। शायद पहला भी हुआ हो, लेकिन उसकी चर्चा मुझ तक नहीं पहुंची। उनकी बेबाकी मुझे काफी पसंद आती है। इसी वजह से मैं आज उनका जिक्र यहां कर रहा हूं। उनकी ये बेबाकी सोमवार को रिलीज हुई उनकी पहली लेखों की किताब में एक बार फिर देखने को मिली। रिलीज समारोह और गोष्ठी के दौरान किताब में सबसे अखिर में शामिल किए गए उनके सिख धर्म से जुङे लेख ‘आपनी पीढ़ी हेठां सोटा फेरीए’ को लेकर काफी गर्मा गर्म चर्चा हुई, लेकिन इस बहस के लिए न तो वह खुद जिम्मेदार थे और न ही उनका लेख, बल्कि उनके खास दोस्त पृथीपाल सिंह द्वारा कही गई बात कि ‘जफर ने इस लेख में सिख लीडरों को अन्य धर्म स्थल जाने पर एतराज जताया है’ ने मौजूद विद्वानों को बहस को जन्म देने का मौका दे दिया। गोष्ठी के अंत में खुद जफर ने कहा कि उन्होंने नेताओं द्वारा धर्म के नाम पर अपनाई जाती दोगली नीति पर सवाल उठाए हैं, न कि किसी के किसी धर्म स्थल पर जाने पर कोई एतराज जताया है। मेरे ख्याल से पृथीपाल जी को इस बेवजह बहस को जन्म देने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए और मेरी जफर जी को भी सलाह है कि जिम्मेदार लोगो के हाथों में ही अपनी मुल्यवान कृतियों की डोर पकङाएं वर्ना भविष्य में उन्हें ऐसी कई बेवजह की बहसों का सामना करना पङ सकता है, जो सृजन शक्ति को भी व्यर्थ ही करती है।


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